वो त्याग हे, तू चाहत हे!

मन को भरमाये नभ चन्दा ......
पर पथ दिखलाता हे दीपक।।
मन बहकाए खिलता चम्पा ......
आँगन महकाती तुलसी हे।
तू स्वंप्न-सजी, मन छाया ......
वो शाश्वत हे अधिकार मेरा।

वो प्रीत हे तू हे प्रियतमा !
वो त्याग हे, तू चाहत हे!

तुझको ढूँढा किस्मत में,
वो किस्मत से आयी आँगन!
कर तन मन अपना सब अर्पण ......
मुझको जो दिया एक नव जीवन।
तू पूजा मेरे प्रेम की हे .....
में फल हूँ उसकी तपस्या का।
तू सागर हे, वो हे गंगा!
वो त्याग हे, तू चाहत हे!

दिन रात तड़प के काटी हे .....
तेरे दरस की कसक सताती हे।
कोसा हे खुदी को नाम तेरे,
यूँ रहे अधूरे अरमान मेरे!
मेरी रात सुहागन कर बैठी .......
हर सुबह स-अर्चन, सम्मान दिए!
वो थाम चली जो हाथ मेरे,
हर तड़क जला, ले साथ फेरे!
तू मावस, काम का पर्दा हे!
वो पूनम, मस्तक की बिंदिया!
तू कविता हे वो हे अर्चन,
वो त्याग हे, तू चाहत हे!

चाह के भी न तुझको जान सका ......
वो खुद को भुला मेरी पहचान बनी!
में नाम तेरे बदनाम हुआ,
वो संसार मेरा, मेरी आन बनी!
तू तू है, न तेरी काया हे!
वो मुझमे समां, मेरी छाया हे!

तू स्वप्न हे, वो मेरी रचना!
वो त्याग हे, तू चाहत हे!

वो त्याग हे, तू चाहत हे!

एहसास ........

12 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वो प्रीत हे तू हे प्रियतमा !
वो त्याग हे, तू चाहत हे!..

मुश्किल होता है ऐसे में एक को अपनाना .. जब दोनों ही जीवन बन जाते हैं ..
कशमकश की सुन्दर दास्तां ...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

स्वप्न और हकीकत...बेहद अच्छी अभिव्यक्ति

Prabodh Kumar Govil ने कहा…

Ehsaas ke saagar ko nazdeek se dekhne ki chaahat kab poori hogi?

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

मन की उलझन की बेहतरीन अभिव्यक्ति....
बहुत सुन्दर रचना..

सादर
अनु

संजय भास्‍कर ने कहा…

अच्छी अभिव्यक्ति

Unknown ने कहा…

चाह के भी न तुझको जान सका ......
वो खुद को भुला मेरी पहचान बनी!
में नाम तेरे बदनाम हुआ,
वो संसार मेरा, मेरी आन बनी!

aisa sanyog bahut mushkil se hi milata hai;;;
sundar abhivyakti....

बेनामी ने कहा…

bahut sunder rachnaa bahut sunder abhivyakti

Aditi Poonam ने कहा…

बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति -बधाई

S.N SHUKLA ने कहा…

सार्थक सृजन, आभार.

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

सुन्दर अहसासों की अभिव्यक्ति..
:-)

निर्झर'नीर ने कहा…

पहले तो आपका बहुत बहुत धन्यवाद लिखना तो वैसे भी अब बंद सा ही है आप जैसे लोगों का प्रोत्साहन कभी कभी भावों को शब्दों में पिरो जाता हैकाश मैं सौदागर होता ,

तो चाँद की चाँदनी .....
एक गठरी मैं बाँध कर लाता ,
और सबको बाँट देता!
लम्हा-लम्हा जिंदगी,
यूँ प्यासी न गुजरती।।

................ बहुत लम्बे वक़्त के बाद आपके ब्लॉग पे आना हुआ .मन प्रसन्न हुआ बहुत परिपक्वता आ गयी है आपके लेखन मैं भी यूँ ही लिखते रहो ..

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बेहद अच्छी अभिव्यक्ति

धन्यवाद !

एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!

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