जा रहे हो कौन पथ पर

सुन कहीं दूर चिडियां हैं चेह्की, खिली कलि कोई, खुशबु महकी,
फिर बैलों की घूंघर खनकी, पनघट पर भी पायल छनकी,
रवि चडा फिर चाँद है भागा, हर आँगन, अंगडाई ले जागा!
पर आँख का मेरी, छटा न अँधेरा.....
जड़ ले बैठा, वहीँ अभागा!
ओरे सखा! मुड के तो देखो..... एक नज़र भर!
छोड़ अकेला, जा रहे कौन पथ पर!!

नभः सा है आँगन, बड़ा मन-भावन!
बैठ किनारे छूता, पुरवा का दामन!!
गुंजित कितना मन-का-मधुबन!
तुम भी देखो संग, इन नयनन-मन!!
दो पल को तो मेरे पास ठहर कर!
छोड़ अकेला, जा रहे कौन पथ पर!!

सुन आँखों वाले, मन के हो काले!
जगती यही है, ये वही हैं उजाले!!
छुपी हुयी है ये सुन्दरता, तेरी ही आँखों के आले!
बहा-बहा के आँसू, इन्ही से गुनाह ले!
पर-उपकारों के खोल चक्षु!
ओ मितवा! देख सहर पर!
छोड़ अकेला, जा रहे कौन पथ पर!!

फिर खामोशी का धुंआ है छाया, चिडियों का झुरमुट चेह्काया,
पनघट शांत हुए हैं फिर से, कहीं झींगुर का गीत गुंजाया,
लौट निशा का रजा आया, हर घर-आँगन अलसाया,
पर आँख का मेरी, छटा न अँधेरा.....
जड़ ले बैठा, वहीँ अभागाओरे सखा!
साथ तो ले चल! आके मुझे गल-बाहों भर!
छोड़ अकेला, जा रहे कौन पथ पर!!
साथी.....!
छोड़ अकेला, जा रहे कौन पथ पर!!


...एहसास!

शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो


मैं, मैं हूँ तभी तुम मुझ से दूर भागते हो!

शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!

मैं हँसता हूँ , दिल से गुनगुनाता हूँ,

शायद एक मीठी मुस्कान पर तुम्हारे सीने से लग जाता हूँ....

इसीलिए तुम मुझे दुत्कारते हो,

शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!


आज मेरे और तुम्हारे बीच वो ऐश्वर्य नही, जो तुम चाहते हो!

पर पलकें बंद कर देखो,

तभी मैं तुम्हे और तुम मुझे महसूस कर पाते हो!!

पल-पल आ जाता हूँ, तुम्हारे इतने करीब...

तभी तो पीछे धकेल, ख़ुद दूर हो जाते हो!

शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!


खामोशी छाई है चरों तरफ़....

और मैं सिर्फ़ एक अपना चाहता हूँ!

हर एक चेहरे को देखता हूँ!

बस एक नज़र भर कोई मुझे देखे, यही चाहता हूँ!!

जीवन पथ के इस मोड़ अंधेरे खडा हूँ!

इसीलिए राह का पत्थर समझ,

एक पल की खुशी ले, ठोकर मार जाते हो!

शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!


न भूलो मौसम कभी एक सा नही रहता!

कभी दम-ठोकर, तो कभी तुफानो-बवंडर!

पत्थर भी मंजिल को बढता!!

बढ़ रहा हूँ मैं भी अपनी मंजिल,

बेशक तुम थोड़ा तेज कदम बढ़ जाते हो!

शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!


आज मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ!

और तुम दूर चले जाते हो,

एक दिन तुम चाहोगे साथ मेरा....

पर मैं बहुत दूर हो जाऊंगा!

तब तुम वो सब मुझ मैं पाओगे,

जो किसी अपने मैं चाहते हो!

पर मुझे महसूस भी नही कर पाओगे,

बेशक तब तुम मुझे छूना चाहते हो!!

मेरा क्या खामोश खडा, खामोश हूँ......

खामोश सदान को हो जाऊंगा!

पर उठती चिता का धुंआ तब भी , उन् रोती आंखों से पूछेगा?

फ़िर आज रस्मे निभाने आए हो?

जोड़ लिए हात, फ़िर वीराने मैं अकेला छोड़ जाते हो?

अन्तिम विदाई मैं ये तो कह दो.....

क्यूँ मैं वैसा नहीं? जिसे तुम चाहते हो!

शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!

शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!


....Ehsaas

हम बहुत सताते हैं


न जाने क्यूँ तोड़ते हैं, उन्ही दिलों को!
जिन दिलों मैं हम बस जाते हैं!!
पल पल रोते हैं, खुली आंखों हम....
झुकी पलकों वो इल्जाम मैं कहते हैं!
हम बहुत सताते हैं!!



सोचते हैं कौन सूत्रधार, इन् गुनाहों का!

क्यूँ न चाह कर भी अपनी आंखों से रिसते
आन्सूनों की कीमत चुकाते हैं!!

फ़िर भी हर उठती निगाह कहती है!

हम बहुत सताते हैं!!

शीश उठा गयी अट्टालिकाएं!

बुलंद हो गए दरवाजे हैं!

हम रह गए इस पार बेबस....

सुने-उजडे विश्वास के गलियारे हैं!!

एहसास कदमो मैं बिछाते!

काश कोई पास आ कहता!!

की, हम बहुत सताते हैं!!



....एहसास!

मने बाहर आबा द्य्यो

मैं थारे हिवडे री चिड़कली,
रन-झुन रन-झुण गाबा द्य्यो!
लग स्यूं हिवडे, चूमूं थारे गालां...
पर थे , मान मने बाहर आबा द्य्यो!!

मीरा पन्ना, पद्मा हाडी!
थारी कोख्ह रो गौरव बन जबा द्य्यो!
मैं थाने दयून कन्या दान रो अवसर...
ऐ मारी जन्मा, मने बाहर आबा द्य्यो!!

मुंह तू कईं लटका कर बैठी...
गोटा-तारा लुगडी पे, लग जाबा द्य्यो!
संग-संग, गौरा-तीज आपां पूजें॥
ऐ मारी सखी मने बाहर आबा द्य्यो!!

नवरात्रा रे नौ दिन पाडा,
घर घर कन्या ढूंढे है...
आग्य्यो मुहूर्त घट धर्बा रो!
ता जनम री कन्या, पुजाबा द्य्यो!
और मैं छोउंगी थारे पगलया॥
ऐ मारी दात्री, मने बाहर आबा द्य्यो!!

जग री चिंता मत कर माँ माहरी॥
ममता रो दूध रिस जबा द्य्यो!
पुरुष बन्या, अब बाप बने वो॥
नाथ थे दोन्या, मने बाहर आबा द्य्यो!!

ऐ जन्मा मने बाहर आबा द्य्यो!!

...एहसास

हिवडे = ह्रदय
चिदक्ली = बेटी
मीरा = मीरा
बाईपन्ना = पन्ना
धायपद्मा = पद्म्मा वती
हादी = हादी रानी
लुगदी = ओढ़ने का दुपट्टा
गौर -तीज = गणगौर -तीज
पाडा = मौहल्ला
घट धर्बा= कलश स्थापना
पगल्या = चरण, पाँव

अँधेरी काली रात की स्याह समेट लाई

अँधेरी काली रात की स्याह समेट लाई!
छुपा शर्म से मुंह, वो प्रकाश पुंज चला गया!
और फैला हाथ मैं, शशि-शांत चली आयी!!
वो कर गए अँधियारा जहाँ, तमाम मेरा......
और मैं अँधेरी काली रात की स्याह समेट लाई!!

राग मल्हारें मैं क्या जानू भला....
क्या दूँ जीवन-संगीत दुहाई!
जो भी सुना वो गीत लगा....
मैं रात की आह समेट लाई!!
वो कर गए अँधियारा जहाँ, तमाम मेरा......
और मैं अँधेरी काली रात की स्याह समेट लाई!!

एक जुगनू से भरी, वो रात प्रियतम बन मिले!
प्रेम सागर हिल उठा॥पर होंठ लज्जा से सिले!!
मौन नारी के समर्पण की गवाह,निशा बैरन बनी!
मूढ भला मैं क्या समझती,
कौन पथ पुष्प....तो कौन पथ कंटक मिले!!
रंग भरी मेरी चुनरिया.......
पल मैं सभी रंग लुटा आयी!
वो कर गए अंधियारा जहाँ, तमाम मेरा......
और मैं अँधेरी काली रात की स्याह समेट लाई!!

मैं लडक-पन की कली,बिन नाथ फूलों सी खिली!
और बगीया इस जहाँ की...हर तूफ़ान निज-दम डटी रही!!
आँख के आंसू हंसी थे!जग ताने प्रशंशा की लदी!!
पर ह्रदय नारी का कोमल.....अंत दगा ही दे गया!
प्रेम के दो बोल सुन,लौह्ह का मन्दिर देह गया!!
लुट गया देवी भवन..........खँडहर दलालों मैं बेच आयी!
वो कर गए अँधियारा जहाँ, तमाम मेरा......
और मैं अँधेरी काली रात की स्याह समेट लाई!!

घर की नारी मुझे है कोसती!
साधू-जन तिरिस्क्रित हैं करें!!
इन् मनुष्यों के जहाँ मैं!
दो हाथ नही, जो पीड़ा को हारें!!
दिन छाडे अँधियारा लिए....
हर रात रौशनी से नहाऊं!
जो कहें पापिन दिनों में....
रात उन्हें पापी बनाऊं!!
ख़ुद को देती मैं मिटा तो, कौन देता ये गवाही!
क्या कहानी रात की है आज मैं सबको सुनाऊँ!!

रात वो अंधियारी घनी, फ़िर न आए कभी!
जाग जाओ है मनुष्यों, मान लो मेरी कहाई!
वो कर गए अँधियारा जहाँ, तमाम मेरा......
और मैं अँधेरी काली रात की स्याह समेट लाई!!
और मैं अँधेरी काली रात की स्याह समेट लाई!!


....एहसास!

ऑरे कन्हाई तेरे दर्शन की मन मैं आयी


ऑरे कन्हाई तेरे दर्शन की मन मैं आयी!
ऑरे कन्हाई तेरे दर्शन की मन मैं आयी!
भोर भाई कब, रैन कब आयी,
बेसुध मन तोसे,मिलन न पायी!
ऑरे कन्हाई तेरे दर्शन की मन मैं आयी!

सुध - बुध खो गयी, तोरे दरश मैं,
जग से जोगी मैं मधुबन मैं,
खो गयी सब धुन, मुरली धुन मैं,
हंसत-कहत जग, मैं बोराई!
ऑरे कन्हाई तेरे दर्शन की मन मैं आयी!

मेरी विपदा, तू ही जाने!
जग न माने, पर तू माने!
वो मुरख तो , हैं अनजाने!
अब तो आ, दूँ दुहाई!!
ऑरे कन्हाई तेरे दर्शन की मन मैं आयी!

मेरी करती मैं, तू संमती मैं!
प्रेम की प्रती मैं, तू अनुमती मैं!
ग्वाल-सखा सी, तू संगती मैं!
तोरी हर छब , मोहे सुहाई!
ऑरे कन्हाई तेरे दर्शन की मन मैं आयी!
ऑरे कन्हाई तेरे दर्शन की मन मैं आयी!

......एहसास!
ओ यारा! पल दो पल की जिन्दगी यूँ बीत जायेगी....
हाथ थाम ले, दो कदम साथ चल ले....
शायद जिंदगी की राह सरल हो जायेगी!
बढ़ा दिए हैं हाथ देख तेरी तरफ़ एहसास ने...
आ उतर जा "एहसास के सागर " मैं, एहसास की कद्र और बढ़ जायेगी!!
......एहसास!


" इस जमीन ने, उन् बद्मानो ने!
रात के उजालों मैं छलकते,

दर्द के पैमानों ने!

मेरे हंसीं ख्वाब जप्त किए हैं.....

होश के कद्रदानों, इन् हुस्न वालों ने!!

.......अनूप पाण्डेय ( एहसास का अन्नू )


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मौन हुए जाते ये लब, यूँ आँख भर आयी !

ये दिल है दिल मासूम तेरा, क्यूँ इसने सज़ा पायी!

गर खुफ्फ़ जग का था तो, इश्कुए क्यूँ किया जालिम ...

ताबूत से रुक्सत हो रही रूह, तू नही आयी !

कैसी रुसवाई !!

एहसास!

घिर आना बदरा


चंचल चितवन की अर्थी पर,
चुपचाप खड़ा इन् रतियन मैं!
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!


जग सोया है, दिल रोया है....
पर आए न आंसू नयनन मैं!
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!


नंगे बदन की पहली बारिश,
वो आँगन, वो गलियन मैं!
वो साथी, वो सखा सहेली,
मचलती बुँदे अत्खेलिन मैं!!
आज यही बारिश की बूंदें,
आग लगाती तन-मन- मैं,
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!



भीगी चपलता को जब ममता,


सिमटाए अपनी बाहिन मैं!


शब्दों मैं क्रोध, भावों मैं आशीष...


और मुकाये बातिन मैं


आज खड़ा फ़िर भी मैं भीगूँ!


पर छांव न ममता की तन-मन मैं!


अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!


हमजोली के संग हाथों मैं हाथ...


दिन-दिन भर भीगे बगियन मैं!


और वो कागज़ की कश्ती,


साथ बहाई निज- नदीयाँ मैं!


किस और ये बहता मैं चला......


नही पता इन् जीवन - धारन मैं!


अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!



हुआ बड़ा, निज- पाँव खड़ा...


फ़िर भी कितना लाचार खड़ा!


इन् मदमस्त बहारों मैं भी...


बूंदों से बचता तैयार खड़ा!


अपनी दशा पे रो सकूं...


अब रहे न आँसू इतने , इन् नयन-निकेतन मैं!


अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!




.......एहसास!

मन की रानी


शब्दों की सेज पे.....

बैठा मैं कलम से पूंछूं!

एहसास के मन की रानी कौन?

इठलाके फ़िर सखीं यूँ बोली......

आ दिखा दूँ रानी, छोड़ के मौन!!



वो खिली-खीली, हंसती इठलाती...

पहली बसंत सी काया!

राज-कामदेव के काम मैं लिपटी...

जिसमे रती का रूप समाया!

ऐसा अप्रितम रूप धरे...

और दूजी होगी कौन?

इठलाके फ़िर सखीं यूँ बोली......
आ दिखा दूँ रानी, छोड़ के मौन!!



आभा चंद्र की से मुख दमका....

चन्द्रिका बनी माथे की बिंदीया!

नयनो मैं लज्जा के हिचकोले...

सुर्ख अधरों मैं मौन शरमाया!

वो चंद्र मुखी घूंघट मैं बैठी...

और दूजी होगी कौन.....?

इठलाके फ़िर सखी यूँ बोली...

आ दिखा दूँ रानी, छोड़ के मौन!!



.....एहसास!

फ़िर रुला गया



बंद पलक संग संग मुस्काया

खुली पलक फ़िर रुला गया!

मैं साथी तेरे, एक साथ को तेरे,

मंजिल की डगर को भुला गया!!


कभी लडे कभी संग हंसा किए!

अनजाने भाव गीत जिया किए!

तू लूट के वो लम्हों को मेरे,

मुझे विरह की अभिव्यक्ति बना गया!!

बंद पलक संग संग ...............



कभी खुशियों से था आबाद जहाँ मेरा!

अब दुःख की घटाएं घिर आयीं!!

कभी मल्हारें आंखों ने गाईं,

अब दर्द भरी कलम थमा गया!!

बंद पलक संग संग.......



जब तुम थे और था साथ तुम्हारा,

तब ये ही था संसार मेरा!!

अब अश्रु - कलम संग संसार खड़ा,

पर अपना होकर भी तू पराया बना गया!!

बंद पलक संग संग ............



आंखों मैं नीर, शब्दों मैं पीर!

चित शांत लिए पर,

भावों मैं अधीर!!

तू मन मीत को,

दर्द गीत बना गया!!

बंद पलक संग संग मुस्काया!

खुली पलक फ़िर रुला गया!!



..........एहसास!


फासले


फासले

ये फासले तेरे - मेरे!
मुझे तेरे नजदीक लाते हैं!
जब जब उठती हैं, नज़रें तेरी तरफ़......
ये कदम ख़ुद - बा - ख़ुद,
तेरी राहों पे उठ जाते हैं!!

कसमे खायीं, वादे किए ख़ुद से कई बार मगर!
जब भी भुलाना चाहा तुझे,
तेरी यादों के बादल ......
उमडे चले आते हैं!!

तुझे बेवफा कहूं भी तो कैसे,
आख़िर इतने फासलों के बावजूद...
तेरे सितम मुझ से,
शिद्दत से वफ़ा निभाते हैं!!

तू खुश रहे यूँही,
यूँही इश्क के दमन मैं झूले!
इश्क तुमसे किया ये गुनाह हमारे थे....
तभी तो अकेले हम, सजा पाते हैं!!

गुनाह के ये मोटी क़यामत तक...
दमन मैं सहेजेंगे!
फ़ना हो जायेंगे ख़ुद....
इश्क के गुलिस्तान आबाद रखेंगे!
न भुलायेंगे कभी तुझे, न भुलाने देंगे....
तेरी यादों मैं सदान जियेंगे, ये कसम खाते हैं!!
ये फासले तेरे मेरे.....
मुझे तेरे नजदीक लाते हैं..........


....एहसास!

उठ ना एक बार फ़िर बेटा कह के पुकार दे

माँ बड़ा हाथ , ऊँगली पकड़
फ़िर से थाम ले......
देख आँख भर आयी है!
थोड़ा तो दुलार दे....
जहाँ भर के लिए तन मन से नकारा हूँ!
पर तेरा तो बेटा हूँ....!
उठ ना......
बेटा कह के एक बार फ़िर से पुकार दे!!
माँ बड़ा हाथ , ऊँगली पकड़
फ़िर से थाम ले......
देख आँख भर आयी है!
थोड़ा तो दुलार दे....

कभी न किसी की सुनी....
न समझी!
तू ही मेरा जहाँ थी,
मेरी तो साँसें तुझमे ही उलझी!!
देख खामोशी के अंधेरे फ़िर
से घिरने को हैं ...
मेरे लिए माँ
तेरी ममता को फ़िर से आकार दे!
उठ ना !
बेटा कह के एक बार फ़िर से पुकार दे!!
माँ बड़ा हाथ , ऊँगली पकड़
फ़िर से थाम ले......
देख आँख भर आयी है!
थोड़ा तो दुलार दे....

हाथ पैर भी दिए जहाँ वाले ने॥
पर तेरे हाथों ही तृप्त हुयी अत्म्मा...
तेरी ही गोद मैं , नापा चार कदमो का जहाँ!!
ये मेरा दुर्भाग्य था
या तेरे भाग्य की हीनता...
आज मेरी ममता का साया बिखरा है जमीं पर ...
तुझे उठाने की ताकत इन हाथों मैं होती....
इसकी खुदाई को दुहाई तो दे!
उठ ना !
बेटा कह के एक बार फ़िर से पुकार दे!!
माँ बड़ा हाथ , ऊँगली पकड़ फ़िर से थाम ले......देख आँख भर आयी है!थोड़ा तो दुलार दे....

जीवन भर तू संघर्ष की मूरत बनी रही....
अभिशाप मैं मिला मैं और तू भाग्य का फल मान
मुझे थामे रही!
भर पेट खिलाया, छाती पे सुलाया!
ख़ुद खाली पेट, बिन बिछोना सोती रही!!
एक झलक देख ना॥
तरस खाती, लेकिन पास ना आती
जमाने की आँखें!
तेरे संघर्ष और मेरी लाचारी को देख रही हैं!
तेरे रूप मैं माँ,
इस जहाँ से ममता मर गयी!
उठ और इस निष्ठुर जग को बोल दे!!
उठ ना !
बेटा कह के एक बार फ़िर से पुकार दे!!
माँ बड़ा हाथ , ऊँगली पकड़ फ़िर से थाम ले......देख आँख भर आयी है!थोड़ा तो दुलार दे....

.........एहसास!

कविता तेरा रूप अक्सर धुन्धता हूँ

कविता तेरा रूप अक्सर धुन्धता हूँ.....
पर हर बार तेरी छाया मैं दिलबर को चूमता हूँ...
कभी तू उसकी आँखों मैं समाया गहरा सागर है
तो कभी लबों पे ठहरी शबनम की बूंद है ॥
कभी केशों की कालिमा मैं छिपी घनघोर घटायें...
कभी चंचल चितवन से झोमता मयूर॥
उसकी साँसों मैं गूंजती तेरी मल्हारें
खामोशीमैं सिमटा भावों का ग्रन्थ....
महबूब पे रचता हूँ कविता...
या कविता मैं महबूब संग झूमता हूँ
कविता तेरा रूप अक्सर धुन्धता हूँ.....
पर हर बार तेरी छाया मैं दिलबर को चूमता हूँ!!

.......एहसास!

कविता क्या तेरी पहचान?


क्या है तू , ऐ कविता?

क्या तेरी पहचान?

मदिर की आरती का स्वर है,

या है मस्जिद की अजान....

गुरुमुखी से सजी है तू,

या बाइबल है तेरी शान?

कवि का तो धरम है,

है एक पहचान!!

क्या है तेरा धरम?

या तू इससे अनजान?

क्या है तू , ऐ कविता?
क्या तेरी पहचान?


मैं रचियता हूँ तेरा, पर

स्वयं भाव शून्य इंसान!

असत्य-स्वार्थ दिनचर्या मेरी,

सत्य भाव तेरी जान......

तू स्वयं साकार - सकल

पर देख,

मैं तेरी पहचान!!

क्या है तू , ऐ कविता?
क्या तेरी पहचान?


जब लिखूं एक भाव छेडून....

मुखरित हों गीत गुंजन गान!

मैं करूँ साकार तुझको,

फ़िर तू बने मेरी आन......

मैं बड़ा या है बड़ी तू?

क्यों कर करूं मैं ज्ञान...

मैं तेरा तू सगिनी मेरी!

तू प्रियसी मैं प्राण!!

क्या है तू , ऐ कविता?
क्या तेरी पहचान?


....एहसास!

मैं!


मैं!
साहित्य के नाम पर सजी पर,
कभी न पढी गयी!
किताब का एक प्रष्ठ मात्र हूँ!
मैं!
रचा तो गया पर,
कभी मंचित न हुआ!
उस नाटक का पात्र हूँ!!
मैं!
खोजो तो अथाह गहराई लिए,
शांत - प्रशांत हूँ!
मैं!
गर महसूस करो तो ,
एहसासों से बनी!
ओस की एक बूँद मात्र हूँ!!
मैं!
गर दो पल दुःख को बाटने ,
साथ बैठो तो....
हर नयन से फ़ुट पड़े वो नयन प्रपात हूँ!
मैं!
गर खुशी मैं पास बुलाओ तो.....
चक्षुओं की चमक, अधरों की खुशी,
और ह्रदय स्पंदन के मधुर धुन से सजा गान हूँ!
मैं!
स्वयं दिवा का दिवाकर हूँ!
मैं ही रश्मि का शशि!
मैं!
हर दिल मैं एहसास बन रहता हूँ,
फ़िर भी ख़ुद गुमनाम हूँ!
मैं!
शान्त- सौम्या "मुकुल "
झूम उठूं तो " मयुरा "
थोड़ा सा सीधा, थोड़ा सा शैतान हूँ!
मैं !
अपने ही अंतर्मन्न मैं खोया,
जो शब्दों मैं सिमटा तो.....
एहसास हूँ!!
मैं स्वयं सवाल का जवाब हूँ!
मैं कौन हूँ?
मैं क्या हूँ?

........एहसास!

मेरा सतरंगी सांवरिया ......


मेरा सतरंगी सांवरिया....
हाथ लिए गुलाला की थरिया....
मेरा सतरंगी सांवरिया!!

आये कितने, कितने बीते!
याद नहीं फागुन के मेले!!
अबकी बार ये फागुन कैसा!
हो गयी में बांवरीयां!!
मेरा सतरंगी सांवरिया......

भोर की बेला अजब ये कैसी!
तन मन में मस्ती भर आयी!!
सूरज को भी रंग लगाने!
लिए रंग घिर आयी बदरीया!!
मेरा सतरंगी सांवरिया......

पूरा घर आँगन में उमड़ा!
हर चहरे पर खुशियाँ छाई!!
एक ही मुखड़ा, बुत बन झान्कुं !
भूल गयी नगरीय!!
मेरा सतरंगी सांवरिया......

धड़क धड़क के फटता जियरा!
पास मेरे जब प्रियतम आये!!
लगा अबीर कपोलन पे मेरे!
ऐसी मारी धार......
की भीग गयी चुनरिया!!
मेरा सतरंगी सांवरिया......

होली के हुदंग के आड़े!
ले हाथ गुलाल, प्रियतम रंग डाले!!
मीत संग होली प्रीत में भीगी!
लिपट गयी सजन संग.......
भर के दोनों हाथ, कमरीया!!
मेरा सतरंगी सांवरिया......

ना जानू राधा के कृष्णा!
मेरा साजन मेरा मोहन!!
वो विशाल वो रूप का योवन!
और में अपने बालम की गुजरिया!!
मेरा सतरंगी सांवरिया......

....एहसास!

क्यों साथ नही दीया?

छोड़ गए अकेले क्यों साथ नहीं दीया!
प्यार करना तो सिखाया, क्यों प्यार नहीं किया?
रहूंगा जिंदगी में शामिल....
कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में साथी बन....
पर साथ नहीं रहूँगा!!
क्यों मुझे तन्हाई का उपहार दीया?

शायद जीवन का वो वसंत था ....
जब हम एक साथ हाथों में हाथ ले हंसा करते थे!
कलियाँ भी खिली थी झूम के .....
साथ ,इस पल में कुदरत ने भी दीया!
आज जीवन का पतझड़ है....
कुदरत भी आंसू बहाती मेरे साथ है!
तुम छोड़ गए अकेले, क्यों साथ नहीं दीया?

में तो चला था हर कदम अकेला...
परछाई क्या, तुमने सिखलाया!
बेशक चलो तुम मेरे आगे,
मैंने ऐसा कब न चाहा...
निकल गए तुम इतने आगे, मुझे अपनी छाया तक न बनने दीया!
तुम रौशनी के सागर में हो खोयी...
पर याद रहे, ये चकाचोंध अक्सर भटकाजाती है...
यहाँ कुछ अँधेरा ही सही पर ॥
अक्सर अँधेरे में अपने नजदीक आ जाते हैं!
फिर , छोड़ गए अकेले क्यों साथ नहीं दीया!
प्यार करना तो सिखाया, क्यों प्यार नहीं किया?


.......एहसास!

एहसास कहाँ रहता हैं?


एहसासों के अन्तर्मन
एहसास जिया करता हैं!
प्रश्न उठे फ़िर भी हर शब....
एहसास कहाँ रहता हैं!!

जिसको देख के विचलित मन...
बन मोर चहक उठता है!
कभी-कभी वो बदरा भी....
भर-भर के नयन रोता है!!

चांद बिखेरे चाँदनी रातों को...
निकल पड़ता है!
फ़िर भी हर घर-आँगन...
अंधियारा पसरा फिरता है!!

कृति-प्रकृति की, जिसे....
एहसास शब्दों मैं पिरोता है!
उन्ही शब्दों की धार से ख़ुद...
खामोश खडा रोता है!!

साथ खड़ा मानव का मेला...
फ़िर भी,
एकाकी सफर करता है!
जो शाश्वत सत्य, जो लेख अटल...
उस लेख से ही डरता है!!

प्रश्न उठे फ़िर भी हर शब....
एहसास कहाँ रहता हैं!!
एहसास कहाँ रहता हैं!!

.....एहसास!

क्या ये मेरे स्वप्न की काया!!


एहसासों के आँचल की छाया मैं!
ह्रदय के तीव्र गतिज लहरों पर!!
वह कमला नयनी, मृगनयनी!
चली आयी सहसा शरमाये!!

घूंघट की बदली के पीछे!
शशि मुख सा था दिव्य स्वरूप!!
कभी मावस, कभी पुरान मासी!
विधु कलाएं नयना अभिरूप!!

रद पट रस गागर छलकाते!
तारक दंत मधुर मुस्काते!!
कभी भिचते, कभी खुल खुल जाते!
ज्यों की पुष्प सहर मुस्काते!!

चन्द्रिका शोभित मस्तक पर!
पुष्प हार लिए कोमल कर!!
देह से बहे मध्य कस्तूरी!
मुस्कान बहे ज्यों की निर्झर!!

श्वेत वर्ण और कोमल काया!
उसपे मलमल, रक्तिम साया !!
शीर्ष से तल तक स्वर्णिम आभा !
क्या ये मेरे स्वप्न की काया!!

.......एहसास !

जीवन का सार ......


"कविता ऐ मौत ",
तू ही जीवन का सार है!
तू ही जिंदगी के हर सुख की झंकार है.....
है निराकार, फ़िर भी महा विकराल...
नही तेरा कोई पारावार है!!

है शाश्वत सत्य ,
तू फ़िर भी घोर अन्धकार है!
है असीम शान्ति पुंज,
फ़िर भी कलह का प्रसार है!!

तू ही आदि,
तू ही अंत......
तू ही जिंदगी का आधार है!
ऐ मौत तू ही जीवन का सार है!!

.......एहसास!

अब कहाँ हैं?

जौ आंखों की शरम को समझें , रिश्तों की मर्यादा पहचाने...
न जाने कहाँ खो गाए, वो एहसास अब कहाँ हैं?

बैंक बैलेंस से तो "भगवान्" भी खरीद लिए जाते हैं,
प्यार क्या, पैसे के दम प्यार के एहसास तक बिक जाते हैं।
शर्म जो कभी गहनों में शुमार हुआ करती थी,
अंग के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए अब तो वो गहना..."गिरवी" रख आते हैं!!

अभी तो हम विकसित हुए हैं...मर्यादा के चोले सिर्फ कुछ कम किये हैं...
परम्पराओं को पिछ्डापन, और आध्यात्म को अंधविश्वास ही कहा है,
पढ-लिख गए हैं,
अभी तो विकास के कई प्रदर्शन बाकि हैं!!

खोज न करो, ये x-जेनरेशन का जहाँ हैं....
कौन बच्चा है संस्कारी, ये संस्कार कहाँ हैं...
कहीं सोशल स्टेटस घट न जाये, बेचारी घबराती हैं !
माँ भी अब बचे को दूध पिलाने से कतराती हैं!!

जो गुजर गयी, उस पीड़ी की बात करते हैं!
जो राम और कृष्ण के किस्से, पूजा की तरह पड़ते हैं!!
ये तो आधुनिकता का ज़माना हैं!
जहाँ हर जुबान पर लेटेस्ट M-टीवी, F-टीवी के किस्से चलते हैं!!

ना दो उपदेश ऐसे जिनका न अस्तित्व यहाँ हैं!
बस हम हैं विक्सित, हमारी उन्मुक्तता, उछ्श्रन्खालता यहाँ हैं !!
बार बार आके रोको न ऐसे!
नहीं यहाँ कोई मानव, न रिश्ता...
एक बिना एहसास का, मशीनी पुतला यहाँ हैं!!

जो शर्म से सिमटा...वो एहसास कहाँ हैं?
जो मर्यादा में मिटाता ......वो एहसास कहाँ हैं?
जो संस्कार को साधे....वो एहसास कहाँ हैं?
जो रिश्तों को पहचाने...वो एहसास कहाँ हैं?

एहसास किससे कहे...किसे पुकारे,"सत्यम-शिवम्-सुन्दरम", जो सर्वोपरी॥
भगवान् जो कभी घर घर में था ....
मंदिरों में जा बैठा॥
अब कहाँ हैं? अब कहाँ हैं?

........एहसास !

टूटते तारे


गम बहुत थे,

सहने के लिए!

कुछ पलों की खुशियों के सहारे!!

जब भी दिखी हमतक आती बहारें!

न जाने क्यों हम ही बन गए......

लोगों की खुशियों को पूरा करने वाले,

टूटते तारे!!


एक नही अनेक मिले ऐसे,

जो हमे अपना कह कर पुकारा करे!

पर जब लड़खडा कर खुद ही गिरे हम,

दूर तलक भी नज़र न आये,

केवल " दो हाथों के सहारे"!!

घोर अमावासी के सितारों की बरात में.....

दुल्हा बन इतराते रहे!

पर न जाने क्यों हम ही बन गाए,

उन् सितारों की झलक को सार्थक करने वाले...

टूटते तारे!!


न कोई दुश्मन,

न कोई पराया.....

सभी तो थे हमारे!

फिर भी खुद को अकेला पाया...

जीवन के हर चोराहे!!

जब तलक दूर रहे वो हमे निहारा किये,

खुद हम जब उनकी चाहत के रास्ते नीचे आने लगे!

तो, न जाने क्यों हम ही बन गए,

दूसरे किसी को पाने की चाहत को पूरा करने वाले.......

टूटते तारे!!


......एहसास!

एहसासों की ओस


जब याद तुम्हारी आती है!
और मायूस हुआ जाता है, मन!!
जब आँखें सुख जाती है!
दुख के सेलाब डूब जाता है, दिल!!

तब चोरी से यूं पलक उठा!
चुप चुप के झाँका करते हैं!!
बस झलक तेरी दिल में यूं छुपा!
मन ही मन पुकारा करते हैं!!

ऐ काश कभी ऐसा भी हो!
तुम हो इक पल को पास मेरे!!
उगता सूरज खुशियों का जहाँ!
वहाँ एहसासों की ओस गिरे!!

दिल से इन एहसासों को लगा!
तुम आओगे इक दिन पास मेरे!!
उस दिन टूटेगी स्वप्न -भंवर !
जब तुम मुस्कुराओगे पास मेरे!!

पर एहसासों की इस ओस को!
नैनों से संवारा करते हैं!!
सपना भी हकीकत हो जाये!
बस यही दिलासा करते हैं!!

......एहसास!

एक बार कह दो.......!


क्यों हमे अपनाने से कतराते हो?
वो क्या है खूबी ? जो तुम हम में चाहते हो......
में भी औरों की तरह इश्वर की एक रचना हूँ.....
"तुम सबसे जुदा हो"!
कहकर क्यों हर बार अकेला छोड़ जाते हो?

मानता हूँ मेरे हाथ और जुबान दोनों...
ज्यादा बोलते हैं!
चाहते तो दिल को छूना पर,
हदों को छू जाएं, इतना बोलते हैं!
सही है, खामोश बुत की पूजा.....
जहाँ करता है!
पर उस बुत को भगवान् बताने वाले
"आराधना के शब्द" ही तो एहसास रचते हैं!
एक बार कह दो !
सदां के लिए खामोशी ओढ़ लेंगे....
चाहत तुम्हारी अराधना की है....
क्या हमे भी बुत बनाना चाहते हो?
क्यों हमे अपनाने से कतराते हो?..........वो क्या है खूबी?जो.........

मासूमियत को दिल में,
नादानी सीरत में....बसाए रहते हैं!
कोई दो पल साथ मुस्कुरा ले,
इसी लिए हर पल ठहाके लगाए रहते हैं.....
जानते हैं ये दुनिया समझदारों की है!
जहाँ पैसा है "भगवान्"
और भगवान् के "व्यापार" की भाषा....
ये मनीषी रचते हैं!
दुनिया हमे मूरख कह के हस्ती है.....
और हम हैं की.....इस हंसी में दुनिया बसाए रहते हैं!
एक बार कह दो!
होटों पर ही हंसी को दफना देंगे!
गुनाहगार तुम्हारे हैं तो,
क्या इस गुनाह की कीमत आंसुओं में चाहते हो?
क्यों हमे अपनाने से कतराते हो?..........वो क्या है खूबी?जो.........

दुनिया की हर चीज़, अलग नज़र से देखते हैं.....
नही जानते ये एहसास क्यों? और कैसे?
अपने जिगर में रखते हैं.....
हर पराये में अपनों को ढूँढते हैं...
और अपनों की आंखों में खुद को ढूँढते हैं!
जो पुरा कर सके,
अपनों के सभी अरमान...
अपनों का साथ पाने का हक़ वही रखते हैं!
यकीन मानो हर पल कोसा है खुद को....
की क्यों? इस जहाँ में हम
अपनी उपस्थिति रखते हैं.....
फिर भी ढेरों अरमान अपने दिल में रखते हैं!
एक बार कह दो!
सारे अरमानों के साथ इस दिल को भी" फंना" कर देंगे!
कम से कम एक आरजू तो
आपकी पूरी कर देंगे!
एहसास मासूम है गुनाहगार नहीं......
क्यों?
दूर जाकर इन्हें गुनाहगार ठहराना चाहते हो!
क्यों हमे अपनाने से कतराते हो?
वो क्या है खूबी ? जो तुम हम में चाहते हो......



......एहसास!

अनाथ


तन मन भूखा, जीवन रूखा!
पडा दुआरे तरस रहा है!!
ए श्रीष्टि के रचने वाले !
इसीलिए क्या मुझे रचा है!!

क्यों जाना दीया वसू - देवकी के!
दीया भाग्य न अपने जैसा!!
कंस राज की इस नगरी में!
न दीया सहारा यशोदा सा!!

था नही ज्ञान तुझको निर्दयी!
इस तन में उर्र और मन भी है!!
मन की भूख दबा भी लें!
पर उर्र की भूख का अंत नही है!!

तू है रखवाला जन-जन का!
पर भूल गया मुझ बालक को!!
अन्न, आँगन, ममता छिनी!
और छीन लिया मेरे पालक को!!

मजबूर पडा मृत्यु की गोद में!
दया से तेरी दूर रहा हूँ!!
क्या? भूखे मरने को ही जिया!
बस यही में तुझसे पूछ रहा हूँ!!

.......एहसास!

यादें

हर कदम पर,
जलाये रखते हैं, वफाओं के चिराग...
डर है कहीं,
देख कर राह मैं अँधेरा,
तेरी यादें,
रास्ता न भूल जाएं....
ये यादें जिन के सहारे,
जीने की तमन्ना,
लिए हैं हम,
हमराह वही,
गुमराह न छोड़ जाएं.....
है चाहत,
मेरी वफ़ा की कसम
तेरी यादों को,
सीने से लगाये हम,
तुझे न सही,
यादों मैं,
तेरी छाया को ही पा जाएं,
तेरी यादें,
रास्ता न भूल जाएं....

......एहसास!

शब्दों से शब्दों का बन्धन...


न सूरत जानू न मन....
शब्दों से शब्दों का ये कैसा बन्धन....!

दूर से कुछ एह्सास उडे चले आते हैं!
न जाने कैसे सारा समां महकाते हैं!!
नही दिखे कहीं गुलाब ........
पर न जाने कैसे महकते हैं गुलाबों के मधुबन!!
न सूरत जानू न मन...
शब्दों से शब्दों का ये कैसा बन्धन.....

छाया से डर, अकेले एक कदम नही बड़ा पाते!
मन के रथ पे सारा जहाँ नाप आते!!
अकेले हैं यूं तो जहाँ मे.....
पर न जाने कितने एहसास के हम-दम
न सूरत जानू न मन...
शब्दों से शब्दों का ये कैसा बन्धन.....

कितने रिश्ते दुनिया ने बनाये!
चाहे न चाहे, हमने रिश्ते निभाए !!
कुछ ऐसे भी रिश्ते हैं,
जो इस कलम ने बनाये!
एहसासों ने निभाए, एहसासों के अंतर्मन.....
न सूरत जानू न मन...
शब्दों से शब्दों का ये कैसा बन्धन.....


.....एहसास!

खुशियों को परखेंगे......


हम अपने दिल को चीर कर रख्देंगे
आज फिर खुशियों को परखेंगे...
हम आस लिए,
विश्वास लिए अपने कमसिन एहसास लिए
फ़िर जिद पर अड़कर देखेंगे...
हम अपने दिल को चीर कर रख्देंगे
आज फिर खुशियों को परखेंगे...
जो बिखर गए,
जो ठहर गए...
या इस दुनिया से बिसर गए,
वो किरदार मिटा कर रख देंगे...
हम अपने दिल को चीर कर रख्देंगे
आज फिर खुशियों को परखेंगे...
तुम मीत मेरे,
संगीत मेरे,
ह्रदय से जो निकले वो गीत मेरे.....
लो प्रणय निवेदन यही,
की निज समर्पण कर देंगे....
हम अपने दिल को चीर कर रख्देंगे
आज फिर खुशियों को परखेंगे...

......एहसास!

आख़िर क्यों!


कभी खुशियों को ढूंन्ढा करे,
कभी खुशियाँ हमे ढूंन्ढा करी,
हर गम मे फिर भी हम साथ रहे,
तो निगाहों ने अब तनहा क्यों आहें भरी!
ज़माने के सितम तो थे ही साथ सहने के लिए,
इसीलिए तो साथ साथ कसमे भरी!
छाया बनने का वादा तुम साथी करते रहे,
फ़िर हर अंधेरे मैं हमसे क्यों तुम छाया,
दूर रही!!
रौशनी मैं तो सब थे साथ मेरे,
तुम भी हातों मैं हाथ लिए साथ रही!
जब अपनापन पाने के लिए तुम्हे ताका करे,
तब आख़िर क्यों दूर जाने की बातें कही!!
जाना ही था तो साथ लिए जाते,
हम मौन पग धरते, चाहे कही,
आज इन बुझती आंखों से भी तुम्हे ढून्ढ्ते रहे,
पर आज भी दिल नही मानता,
आख़िर क्यों? तुम नही कही!!

.........एहसास

!!खांमोशी की सज़ा हमे यूं न दो!!

खांमोशी की सज़ा हमे यूं न दो,

की धड़कते दिल की धड़कन

सदा के लिए खामोश हो जाए!

अपने तनहा ख्वाब मे ही सही,

एहसासों को अपने लब छूने दो,

की एक बार फ़िर जीने की ख्वाइश हो जाए!!

कोई तो ऐसा मौका दो,

जब दिल का एहसास जुबान पर आ जाए!

न चाहो इन्हे तो रहने दो,

गर हो पसंद तो मौन समर्थन हो जाए!!

.....एहसास

तुम क्या दूर गए हमसे...!!


तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

हाथ पकड़ के वो बचपन मैं...
जब हम खेले छुप्नी-छुपाई.....
चाह के भी तब छुप ना पाये....
जब-जब तुमने आवाज लगाई.....
हार गए हर बार मगर,उस हार मैं भी हम जीते तुमसे......
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

सुबह सुबह स्कूल की बस मैं....
पास की सीट खाली रखना...
और बैठने पर पास तुम्हारे....
बस तुमसे ही बातें करना...
उन बातों मैं तुम को पाकर....
ख़ुद को भुला देते इस जग से.....
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

क्लास मैं जब मैं अवाल आता...
खुशी तुम्हारी नही समाती....
और कभी जब डांट मैं खाता...
मुझ से पहले तुम रो जाती....
मुंह बिचका के जब हम हाँसते...
हंसती फीजाएं खुशियों से....
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

बचपन साथ बिता कर...
जब आयी जीवन की तरुनाई....
साथ जियेंगे, साथ मरेंगे....
ले हाथो मैं हाथ, हमने कसम खायीं....
एक रहे हैं, एक रहेंगे.....
कोई रखे या न रखे नाता हमसे......
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

जग से तो हम लड़ भी लेते.....
पर नही भाग्य के आगे सुनवाई.....
क्यों दिए तुम्हे दो दिन, जीवन के कम...
हाय खुदाई तरस न आयी....
भूल गया तब नाम खुदा का.....
जब लिखी जुदाई उसने तुमसे......
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

वो लम्हा जब जीवन की डोरी.....
सिसक सिसक के टूट रही थी.....
गम मैं मेरे तुम, एक पल न रोना....
छलकती आँखें बोल रही थी....
"साथ तुम्हारे हर पल जीती...
नही चाहती बिछड़ना तुमसे"......
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

आज उदासी हर शब छाई....
क्यों मौत मुझे लेने न आयी....
हाय ये कैसी किस्मत पायी...
जो जीवन थी, वो ख़ुद न जी पायी॥
ऐसी सज़ा क्यों मिली है हमको....
हाय क्या गुनाह हुए थे हमसे....
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

.......एहसास

हम तुम क्यों खामोश हैं !

हम तुम क्यों खामोश हैं !
सारी कायनात प्रीत के आगोश मैं है!
हम तुम क्यों खामोश हैं!!
जीया की हर धड़कन ......
गीत प्यार का गाती है......
सासों की आरोहन - अवरोहन.....
तुम्हे अपना बताती है......
लहू भी लिए रंग प्रेम का है.......
सारी कायनात प्रीत के आगोश मैं है!
हम तुम क्यों खामोश हैं!!

तड़पते होटों की कसक को .....
बहते आंखों के नीर दिखाते हैं.....
आलिंगन को कितने अधीर है........
ये फैले मेरे बाजू बताते हैं .....
झुकी नज़रें अब प्यार पाने को हैं....
सारी कायनात प्रीत के आगोश मैं है!
हम तुम क्यों खामोश हैं!!

पंछी भी बिन कहे साथी का दर्द समझते हैं....
प्रीत का बिन बोले........
एहसास वो करते हैं....
दूरी अनंत, अम्बर और धारा मैं है......
फ़िर भी वो क्षितिज पर मिलते हैं......
प्रीत और प्रीती का मिलन .....
बिन लाव्जों के करते हैं........
अब शब्दों का सूखने को कोष है......
सारी कायनात प्रीत के आगोश मैं है!
हम तुम क्यों खामोश हैं!!

.......एहसास

तुम तो सो जाओ तारों!


तुम तो सो जाओ तारों! तुम्हे कसम हमारी है.........

परेशान रात सारी है!
तुम तो सो जाओ तारों,
तुम्हे कसम हमारी है!!
मन बोझिल है, फ़िर छाई खुमारी है!
तुम तो सो जाओ तारों तुम्हे कसम हमारी है.........
फ़िर चाँद नज़र आ रहा है!
एक नज़र वो मुझे भी ताके....
बावरा मन यही चाह रहा है...
पर मेरे एहसासों की रौशनी क्या उस तक पहुँचेगी!
यही ख्याल पल - पल सता रहा है!
लो फ़िर जला ली लौ चाहतों की है!
तुम तो सो जाओ तारों.....................
माना तुम यार हमारे हो!
हमारी खुशियों पर ख़ुद को वारे हो!
पर मन मैं कसक तो उसको पाने की है!
जो दूर से लगता अपना है!
पर जिस पे नज़र ज़माने की है!!
फ़िर रात भर पी लेंगे!
अभी जाम बाकी है.....
तुम तो सो जाओ तारों........................
समय कटेगा, ये तन्हाई भी रुसवा कर जायेगी!
ज्यों थमेंगी साँसे, मुन्देंगी आँखें......
यूँही ये रात भी कट जायेगी!
रहेगा खवाब अधूरा........
मन की आस अधूरी रह जायेगी!
जहाँ सारा , फ़िर जागेगा ले अन्ग्राई!
और हमारी मिलन की आस,प्रभात किरण मैं खो जायेगी!!
तुम मेरे चाँद को संभाले रखना.....
जलने दो, ये एहसासों की चीता हमारी है!!
तुम सो जाओ तारों तुम्हे कसम.................
परेशां रात सारी है! तुम सो जाओ तारों!!

...................................एहसास!

एक गुनाह फिर आज किया!

एक गुनाह फिर आज किया!
मैंने किसी से प्यार किया!!
नयन भर के जब उस को ताका....
नज़रों ने उसकी भी, इशारा किया....
ओठ के कॉलर, तान के सीना,
फिर हमने तरी किया.....
" EXCUSE ME... क्या मिले हैं पहले"
दे इस्माइल इश्क का आगाज़ किया......
हुआ जो INTRO बात चली फिर,
mac'dee मैं Pizza से TIME स्पिसे किया....
देख के तुमको कुछ kuchh होता,
फिर दिल ने इजहार किया....
तुम que मैं नम्बर 5, खडे हो,
REPLY उन्होने with PRIDE किया.....
पहले केस वो निपटा लूं, फिर
बारी तुम्हारी आएगी,
नही बुरे तुम भी कुछ ज्यादा,
कुछ इस तरह उन्होने इकरार किया.....
उठा BEG और बाय कहके ,
MADEM ने प्रस्थान किया.....
लुटे पिटे से बैठे सीट पर,
वल्लाह ये कैसा प्यार किया......
एक गुनाह फिर आज किया....
मैंने किसी से प्यार किया.....

...एहसास

फिर कोई ख्वाब अधूरा रह गया!


फिर कोई ख्वाब अधूरा रह गया!
कोई गुलाब अधखिला रह गया........!!
तनहईयों कि चादर कुछ इस तरह ओढ़ कर बैठे रहे....
कि अँधेरेमैं डूबे रौशनी को खोजते रहे!!
मावस से पूनम, पूनम से मावस "रात का राजा " भी अपनी कलाएं बदलता रहा ....
और हम " कलाराहित",पल-पल "जीवन कि रात" को जीते रहे....
कहा करते हैं,समय का पहिया कभी थमता नहीं!
पर हम तो अपने समय के साथ,थामे से खडे रहे......
ख्वाब का दिया जलाये बैठे थे....
दो हाथों का सहारा, तन्हाई कि चादर हटाएगा...
रौशनी कि चाह मैं पलकें भिगाये बैठे थे.......
हर आहट पर लौ डगमगा जाती...
कि किरणों से "आलिंगन कि चाह" उसे सताती....
तन से मन तक केवल भूख ही थी हमारी....
"इंसानों के जहाँ" मैं जी रहे हैं,आज उत्तर गयी ये भी खुमारी.....
पहली बार कोई अपने पन से हम तक आया....
ड़बड्बायी आंखों से ताका,तो उसे "काल का साया" पाया ......
बहुत देर कि अपनाने मैं........
जल्दी कि होती "परमात्मा " से मिलवाने मैं....
अंगों से लाचार, इस जहाँ मैं भेज दिया....
गुनाह थे मेरे , ऐसा कर तुमने गुनाह किया......
आत्मा को तो तुमने साथ ले लिया....
पर ये बदनसीब, तिरस्कृत रह गया....
हाय! फिर कोई ख्वाब अधूरा रह गया....
फिर कोई गुलाब अध खिला रह गया...!


..........एहसास!

धन्यवाद !

एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!

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